Tuesday, July 22, 2025

श्री जगदीश कला मंदिर से निकलेगी भव्य रथयात्रा, गुंडिचा मंडप में होंगे दर्शन-पूजन और प्रसाद वितरण गोंचा पर्व को लेकर आयोजन समिति का गठन, 27 जून को निकलेगी रथयात्रा

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नारायणपुर, 23 जून 2025- श्री जगदीश कला मंदिर से निकलेगी भव्य रथयात्रा, गुंडिचा मंडप में होंगे दर्शन-पूजन और प्रसाद वितरण गोंचा पर्व को लेकर आयोजन समिति का गठन, 27 जून को निकलेगी रथयात्रा

आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि पर प्रति वर्ष की भांति इस वर्ष भी भगवान जगन्नाथ जी की रथयात्रा का पर्व 27 जून, शुक्रवार को पूरे श्रद्धा और उल्लास के साथ मनाया जाएगा। इस अवसर पर श्री जगदीश कला मंदिर से भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा पारंपरिक रीति-रिवाजों के साथ भक्तों की उपस्थिति में निकाली जाएगी, जो नगर भ्रमण करते हुए पुराना बस स्टैंड स्थित हनुमान मंदिर के प्रांगण में बने गुंडिचा मंडप पहुंचेगी।

गुंडिचा मंडप में श्रद्धालु भगवान के श्रीविग्रहों के दर्शन, पूजन और प्रसाद ग्रहण कर सकेंगे। यहां रथयात्रा के बाद नौ दिनों तक पूजा-पाठ, प्रसाद वितरण और पाठ का आयोजन किया जाएगा।

रथयात्रा की तैयारियों को लेकर श्री जगदीश कला मंदिर प्रांगण में एक बैठक आयोजित की गई, जिसमें आयोजन की रूपरेखा तय की गई। साथ ही श्री हनुमान मंदिर परिसर (पुराना बस स्टैंड) में भी एक बैठक आयोजित की गई, जिसमें ‘श्री श्रीगोंचा आयोजन समिति’ का गठन किया गया।

बैठक में सर्वसम्मति से श्री तेजप्रकाश सोनी को समिति का अध्यक्ष चुना गया, जबकि रोमी कुमार को उपाध्यक्ष, सुदीप झा को सचिव एवं हेमन्त संचेती को कोषाध्यक्ष बनाया गया।

समिति अध्यक्ष श्री सोनी ने जानकारी देते हुए बताया कि इस वर्ष की रथयात्रा 27 जून को श्री जगदीश कला मंदिर, नारायणपुर से प्रारंभ होकर नगर भ्रमण करते हुए श्री हनुमान मंदिर के गुंडिचा मंडप तक पहुंचेगी। उन्होंने समस्त नागरिकों से अपील की कि वे सपरिवार इस पुण्य अवसर पर रथयात्रा में भाग लें और धार्मिक लाभ प्राप्त करें।

आयोजन समिति ने जिले की समस्त रामायण मंडलियों (महिला एवं पुरुष), मानसगान समितियों और संगीत मंडलों से अनुरोध किया है कि वे गुंडिचा मंडप में अपनी सांस्कृतिक प्रस्तुतियाँ देकर इस पर्व को और अधिक दिव्य एवं भव्य बनाएं।

समिति की ओर से बताया गया कि रथयात्रा कार्यक्रम की तैयारियाँ प्रारंभ हो चुकी हैं और शहरवासियों से विशेष सहयोग की अपेक्षा की गई है, ताकि यह आयोजन न केवल धार्मिक उत्सव के रूप में, बल्कि सामाजिक एकता और सांस्कृतिक गौरव का प्रतीक बन सके।

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