
जगदलपुर। छत्तीसगढ़ ने अपने 25 वर्षों के विकास पथ पर पर्यावरण संरक्षण, स्थानीय आजीविका और जल प्रबंधन के क्षेत्र में ऐतिहासिक उपलब्धियाँ दर्ज की हैं, जिसने राज्य के ग्रामीण और वन क्षेत्रों के जीवन को पूरी तरह से बदल दिया है। विकास की इस गाथा में सबसे बड़ी सफलता लघु वनोपजों के क्षेत्र में मिली है। संग्राहकों की आय को सुनिश्चित करने के लिए तेंदूपत्ता का मानक बोरा मूल्य जो वर्ष 2000 में मात्र 400 रुपए था, वह बढ़कर अब 5,500 रुपए हो गया है।

इसके अलावा, लघु वनोपजों पर समर्थन मूल्य पर खरीद की संख्या 7 से बढ़कर अब 67 तक पहुँच गई है, जिससे वनवासियों की आर्थिक सुरक्षा मजबूत हुई है। इस पहल को वन धन विकास योजना के माध्यम से बल मिला है, जिसके अंतर्गत 190 स्व सहायता समूहों की 2364 महिलाओं को वनोपज संग्रहण और प्रसंस्करण में निरंतर रोजगार मिला है। इसके फलस्वरूप, लघु वनोपज संग्राहकों को डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर के माध्यम से 190 करोड़ रुपए से अधिक का भुगतान सीधा उनके खातों में किया गया है, जो इस क्षेत्र में पारदर्शिता और समृद्धि को दर्शाता है।

आजीविका के साथ-साथ जल संरक्षण और ईको टूरिज्म ने भी विकास को नई गति दी है। राज्य में नरवा उपचार के तहत 7 लाख से अधिक जल संरक्षण संरचनाओं का निर्माण किया गया है, जिससे लगभग 400 किलोमीटर लंबाई और 15 हजार हेक्टेयर क्षेत्र का उपचार संभव हो सका। इन भू-जल संरक्षण कार्यों ने 40 करोड़ रुपए से अधिक का रोजगार सृजन किया है। इसका सीधा परिणाम भूमिगत जल के स्तर में वृद्धि के रूप में सामने आया है, जिसने कृषि उत्पादन को बढ़ाया है। इस सम्बंध में आईएसएफआर 2023 की रिपोर्ट ने भी इसकी पुष्टि की है, जिसके अनुसार मृदा-नमी में सुधार के कारण वन घनत्व में भी वृद्धि दर्ज की गई है। पर्यटन और हरियाली को बढ़ावा देने के लिए ईको टूरिज्म को रोजगार सृजन का एक महत्वपूर्ण साधन बनाया गया है। विश्व प्रसिद्ध चित्रकोट जलप्रपात के समीप नेचर ट्रेल के निर्माण के साथ-साथ मिनी गोवा और खुर्साकोटा जैसे कई अन्य ईको टूरिज्म स्थलों के विकास की योजना बनाई गई है, जिससे स्थानीय निवासियों के लिए रोजगार की उपलब्धता सुनिश्चित हुई है। इस हरित विकास में किसानों का योगदान भी सराहनीय है। 19,000 से अधिक किसानों ने गैर वन भूमि में लगभग 2 करोड़ 42 लाख पौधों का रोपण किया है। ये सामूहिक प्रयास आईएसएफआर 2023 की रिपोर्ट में परिलक्षित होते हैं, जिसमें छत्तीसगढ़ के वन क्षेत्र में 94.75 वर्ग किलोमीटर की उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज की गई है। यह समग्र विकास यात्रा दर्शाती है कि राज्य ने प्रकृति और मानव कल्याण के बीच एक मजबूत संतुलन स्थापित किया है।




