अबूझमाड़ की गोद में छिपा ‘स्वर्ग’, बदलते हालातों में सैलानियों का नया ठिकाना बना कच्चापाल जलप्रपात

चार दशक बाद लौट रही रौनक, सुरक्षा व्यवस्था और प्रशासन की पहल रंग ला रही
नारायणपुर/अबूझमाड़, 15 जुलाई।
छत्तीसगढ़ के घने जंगलों और दुर्गम पहाड़ियों में बसा अबूझमाड़, जो कभी नक्सलवाद के कारण भय और सन्नाटे का पर्याय बन गया था, अब अपनी नैसर्गिक सुंदरता के लिए फिर से पहचाना जाने लगा है। जिले के कच्चापाल क्षेत्र में स्थित जलप्रपात आजकल पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र बना हुआ है। बरसात के मौसम में इस झरने की भव्यता देखते ही बनती है।
कभी जिस स्थान का नाम सुनते ही लोगों की रूह कांप उठती थी, अब वहीं हर दिन पर्यटकों की चहल-पहल देखी जा रही है। सुरक्षाबलों की सतत कार्यवाही, शासन-प्रशासन की सक्रियता और स्थानीय समुदाय के सहयोग से अबूझमाड़ में परिवर्तन की बयार बहने लगी है।
अबूझमाड़ के कच्चापाल में बहता सौंदर्य
जिला मुख्यालय नारायणपुर से लगभग 37 किलोमीटर दूर स्थित कच्चापाल जलप्रपात एक अत्यंत मनोरम स्थल है, जो खासकर वर्षा ऋतु में अपनी पूरी भव्यता के साथ प्रवाहित होता है। चारों ओर फैली पहाड़ियों, हरियाली, गगनचुंबी वृक्षों और ऊंचाई से गिरती जलधाराओं की सम्मोहक छवि पर्यटकों के मन में अमिट छाप छोड़ जाती है।


यह जलप्रपात केवल प्राकृतिक दृश्य ही नहीं, बल्कि अबूझमाड़ की छिपी हुई आत्मा को भी अभिव्यक्त करता है, जो वर्षों तक नक्सलवाद की कालिमा में ढकी रही।
नक्सलवाद के डर से पर्यटन का सूखा
अबूझमाड़ का नाम लेते ही कभी मन में भय की तस्वीर उभरती थी। चार दशकों तक यह क्षेत्र नक्सली गतिविधियों का गढ़ बना रहा। न तो कोई पर्यटक यहां आ सकता था, और न ही स्थानीय लोगों को इसकी सुंदरता का भरपूर आनंद मिल पाता था। लाल आतंक ने ना केवल जीवन की गति रोकी, बल्कि प्रकृति के अद्भुत स्वरूप को भी छुपा दिया।
सुरक्षा बलों की कार्यवाही बनी परिवर्तन की आधारशिला
पिछले डेढ़ सालों में सुरक्षा बलों द्वारा नक्सलियों के खिलाफ की गई लगातार कार्रवाई, और कच्चे इलाकों में पुलिस बेस कैंपों की स्थापना ने इस भय के माहौल को काफी हद तक समाप्त कर दिया है। नतीजा यह है कि आज अबूझमाड़ का कच्चापाल जलप्रपात एक बार फिर से जीवन की हलचल से भरने लगा है।
कैसे पहुंचे कच्चापाल?
नारायणपुर से 17 किलोमीटर दूर कुंदला पहुंचने के बाद, कोहकामेटा होते हुए करीब 21 किलोमीटर की यात्रा तय कर कच्चापाल पहुंचा जा सकता है। यहां रामकृष्ण मिशन आश्रम के पास से लगभग 2 किलोमीटर का पैदल रास्ता तय करके जलप्रपात तक पहुंचा जा सकता है।
बरसात में खिलता है रूप
विशेषज्ञों का मानना है कि यह झरना वर्षा ऋतु में ही पूरी ताकत से बहता है। जुलाई और अगस्त के महीने यहां पर्यटकों की सबसे अधिक आमद देखी जाती है। नीचे बना प्राकृतिक जलकुंड पर्यटकों को रोमांच का अनुभव देता है, जहां लोग घंटों बैठकर प्रकृति के संग संवाद करते हैं।
युवाओं में बढ़ा उत्साह
हमारी टीम जब कच्चापाल पहुंची, तो वहां बड़ी संख्या में स्थानीय युवाओं की मौजूदगी ने साफ कर दिया कि अबूझमाड़ में बदलाव की लहर दौड़ चुकी है। कई युवाओं ने कहा कि उन्हें इस बात का गर्व है कि उनके क्षेत्र में इतनी सुंदर जगहें हैं, जिनके बारे में उन्हें खुद पहले जानकारी नहीं थी।
“पहले डर के कारण हम यहां आने की सोच भी नहीं सकते थे, अब हर सप्ताह किसी न किसी दोस्त के साथ आना हो ही जाता है। कच्चापाल अब हमारा पिकनिक स्पॉट बन गया है,” — स्थानीय छात्र
बुनियादी सुविधाओं का अभाव
हालांकि अब भी कुछ चुनौतियां मौजूद हैं। कच्चापाल जलप्रपात तक पहुंचने वाला मार्ग अभी पूरी तरह विकसित नहीं है। रास्ते में संकेतकों की कमी, शौचालय और विश्राम स्थल जैसी सुविधाओं का अभाव पर्यटकों को खलता है। स्थानीय जनप्रतिनिधियों का कहना है कि यदि इन बुनियादी ढांचों को विकसित कर दिया जाए, तो कच्चापाल ना केवल छत्तीसगढ़, बल्कि देश के प्रमुख पर्यटन स्थलों में शामिल हो सकता है।
पर्यटन से विकास की ओर
पर्यटन न केवल आर्थिक उन्नति का जरिया बन सकता है, बल्कि यह क्षेत्रीय युवाओं को रोजगार से जोड़ने का भी माध्यम बन सकता है। होम-स्टे, पर्यटन गाइडिंग, ट्रैकिंग, हस्तशिल्प बिक्री जैसे कई संभावनाएं इस क्षेत्र में जन्म ले सकती हैं।
कच्चापाल से वायरल हो रही तस्वीरें
इन दिनों सोशल मीडिया पर कच्चापाल झरने की तस्वीरें और वीडियो वायरल हो रही हैं। इंस्टाग्राम रील्स, फेसबुक पोस्ट और यूट्यूब व्लॉग्स के जरिए अबूझमाड़ की छवि देश-दुनिया तक पहुंच रही है। इससे यहां पर्यटन की नई संभावनाओं को बल मिल रहा है।
भयसे विश्वास की ओर
कभी जहां सिर्फ बंदूकें गूंजती थीं, आज वहां बच्चों की खिलखिलाहट, युवाओं की टोली और परिवारों की मुस्कान गूंजने लगी है। अबूझमाड़ का यह परिवर्तन केवल सुरक्षा की जीत नहीं, बल्कि प्रकृति, संस्कृति और सामाजिक चेतना की भी पुनः स्थापना है।
