अबूझमाड़ के गारपा में 35 साल से बंद उद्यान को पुनः शुरू करने की मांग तेज

ग्रामीण बोले – “रोजगार का साधन था यह बगिया, अब फिर से चाहिए जीवन देने वाली हरियाली”

कैलाश सोनी, (नारायणपुर छत्तीसगढ़)। नक्सलवाद की छाया ने जिन सपनों को वीरान कर दिया था, अब वही सपने फिर से हरे होने को बेताब हैं। नारायणपुर जिले के अबूझमाड़ क्षेत्र अंतर्गत गारपा गांव में स्थित 35 वर्षों से बंद पड़ा उद्यान एक बार फिर चर्चा में है।

स्थानीय ग्रामीणों और जनप्रतिनिधियों ने जिला प्रशासन से मांग की है कि इस ऐतिहासिक बागवानी परियोजना को पुनः प्रारंभ किया जाए, ताकि युवा वर्ग को फिर से स्थानीय स्तर पर रोजगार मिल सके और गाँव की अर्थव्यवस्था में हरियाली लौटे।
नक्सलवाद की छाया में सूख गया था हरियाली का सपना

बताया जाता है कि यह फल उद्यान वर्ष 1989 के आसपास उद्यानिकी विभाग द्वारा स्थापित किया गया था, और कुछ ही वर्षों में यहाँ आम, अमरूद, कटहल, नींबू जैसे फलों की अच्छी उपज होने लगी थी।
लेकिन जब नक्सली गतिविधियाँ बढ़ीं, तो क्षेत्र में दहशत का माहौल बन गया। अधिकारियों का आना-जाना बंद हुआ और उद्यान धीरे-धीरे वीरान होता चला गया।
आज, वो ही पौधे पेड़ों का रूप ले चुके हैं, पर कोई देखभाल नहीं होने से उत्पादकता ठप पड़ी है।
सरपंच और ग्रामीणों ने प्रशासन से लगाई गुहार
ग्राम गारपा के सरपंच एवं ग्रामीणों ने एक स्वर में मांग की है कि इस बगिया को फिर से सजाया जाए। उनका कहना है कि यह सिर्फ एक उद्यान नहीं, बल्कि क्षेत्र के सैकड़ों परिवारों के जीवन का सहारा था।
“आज भी वहाँ बड़े-बड़े फलदार पेड़ खड़े हैं। थोड़ा सा प्रयास हो, तो फिर से यहाँ से आमदनी शुरू हो सकती है,”
— ग्रामीणों ने बताया।
स्थानीय रोजगार और खाद्य सुरक्षा की उम्मीद
उद्यान शुरू होने से न केवल स्थानीय बेरोजगार युवाओं को काम मिलेगा, बल्कि स्कूल, आंगनबाड़ी और ग्रामीण बाजारों को स्थानीय स्तर पर ताजे फल भी मिल सकेंगे।
विशेषज्ञों का मानना है कि ऐसे क्षेत्रों में बागवानी जैसे स्थायी स्रोत खोलने से नक्सल प्रभाव को कम करने में भी सहायता मिल सकती है।
प्रशासन से सकारात्मक पहल की आशा
अब उम्मीद की जा रही है कि जिला प्रशासन इस जनआवाज पर ध्यान देगा और इस ऐतिहासिक उद्यान को पुनर्जीवित करने की दिशा में ठोस कदम उठाएगा। ग्रामीणों का विश्वास है कि यदि सरकार साथ दे, तो यह बगिया फिर से खुशहाली ला सकती है।
“हमारी अगली पीढ़ी को पेड़ों की छांव और रोजगार दोनों चाहिए,” — एक बुजुर्ग ग्रामीण की भावुक अपील।




