नारायणपुर

लोक आस्था का पर्व – कोकोड़ मुदिया पेन मंडा: राजटेका माता का वार्षिक देवजातरा “हेसा कोडिंग” का आयोजन

49 गांवों के देवी-देवताओं का हुआ सम्मिलन, 8 फरवरी को होगा समापन…

नारायणपुर: नारायणपुर की अधिष्ठात्री देवी राजटेका (कोकोड़ीकरीन) माता का तीन दिवसीय देवजातरा का समापन शनिवार, 8 फरवरी को होगा। यह देवजातरा कोकोड़ी, बागडोंगरी में राजटेका माता और उनके पति हाड़े हड़मा की पूजा-अर्चना के साथ मनाई जाती है। गोंडी समुदाय में इसे “कोकोड़मुदिया” कहा जाता है, और राजटेका के अन्य नाम भी कोकोड़डोकरी और कोकोड़ीकरीन हैं।

लोक साहित्यकार और जनजातीय शोधकर्ता डॉ. भागेश्वर पात्र के अनुसार, प्राचीन काल में तीन भाई—बप्पे हड़मा, हाड़े हड़मा और नूले हड़मा मावली माता की शरण में आए थे। माता के सात बेटियों में से एक बेटी राजेश्वरी से हाड़े हड़मा का प्रेम संबंध स्थापित हुआ, जिसे उनके दोनों भाइयों ने अस्वीकार किया। हाड़े हड़मा ने अपने भाई के प्रिय घोड़े को चुराकर राजेश्वरी को कोकोड़ी, बागडोंगरी लाया, और यह घटना आज भी घोड़े की प्रतीकात्मक उपस्थिति के रूप में कोकोड़ी में जीवित है।

नारायणपुर अंचल में कोकोड़ीकरीन की प्रतिष्ठा

नारायणपुर क्षेत्र में राजटेका माता की पूजा अत्यधिक महत्वपूर्ण मानी जाती है। 32 बहना, 84 पाट और 33 कोटि देवी-देवताओं की परंपरा के साथ राजटेका की प्रतिष्ठा भी विशेष है। यहां हर वर्ष नवाखाई का पर्व माता के देवगुड़ी में संपन्न होता है, और इसके बाद ही अन्य देवी-देवता नवाखाई का आयोजन करते हैं। माता के आशीर्वाद से ही नारायणपुर में प्रसिद्ध मावली मंडई का आयोजन होता है।

तीन दिवसीय देवजातरा का प्रारंभ विभिन्न गांवों और परगनाओं के देवी-देवताओं के आगमन से होता है। जातरा स्थल पर विभिन्न क्षेत्रों से लोग अपनी पेनबाना, आंगादेव, लाट, डोली और विग्रह के साथ पहुंचते हैं। दूसरे दिन, देवी-देवता लोगों को दर्शन देकर आशीर्वाद देते हैं। माता के सेवक घर-घर जाते हैं, रचन खेलते हैं, और गांव की सुरक्षा की जिम्मेदारी देवी-देवता अपने ऊपर लेते हैं। तीसरे दिन समापन पर देवताओं की विदाई की जाती है।

इस वर्ष 49 गांवों के देवी-देवता सम्मिलित हुए

इस साल के वार्षिक देवजातरा में 49 गांवों के देवी-देवता सम्मिलित हुए हैं। 6 फरवरी को शुरू हुआ यह उत्सव 8 फरवरी को देवी-देवताओं की विदाई के साथ समाप्त होगा। इस अवसर पर परगना मांझी सुधवाराम मण्डावी, पेन चालकी सोमारू भोयर, संतुराम पोटाई, जगन्नाथ यादव, रायसिंह पोटाई, महेश्वर पात्र और अन्य स्थानीय लोग सक्रिय रूप से शामिल रहे।

इस उत्सव के दौरान आदिवासी समुदाय के लोग भगवान से सुख, शांति और समृद्धि की कामना करते हुए इस पर्व को बड़े धूमधाम से मनाते हैं।

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